Tuesday, October 2, 2012

शालीनता का प्रतिरोध अस्त्र



कल के टाइम्स आफ इंडिया के City City Bang Bang स्तम्भ में श्री संतोष देसाई का लेख A Weapon Called Grace’ पढ़ने को मिला जो अति हृदयस्पर्शी है।इस लेख में यू एस में भारतीय सिक्ख मूल की एक लड़की बलप्रीत कौर से संबंधित एक घटना का जिक्र किया गया है। इस लड़की की तस्वीर, जिसमें उसके चेहरे पर मर्दों की तरह उगे बाल हैं,सोसल मीडिया के फनी सेक्सन में किसी ने प्रकाशित किया व इस लड़की का व उससे संबंधित समुदाय का मजाक उड़ाते हुये किसी ने भद्दे चुटकुले व टिप्पड़ी लिखी थी।

सामान्यतया ऐसे भद्दे मजाक व अशोभनीय टिप्पड़ी, विशेषकर यदि यह हमारे समुदाय या धर्म पर छींटाकशी हो, पर हमारी प्रतिक्रिया गुस्से व क्षोभभरी ही होती है, व हम ऐसे मजाक के खिलाफ ईंट का जबाब पत्थर से देने के अंदाजवाली प्रतिक्रिया जाहिर करने लगते हैं ।कभी-कभी तो ऐसी घटनाये हिंसक रूप धारण कर लेती हैं।किंतु इस लड़की ने बड़ी ही शालीनता दिखाते हुये , व बिना किसी तरह के बचावबोध के, स्वयं ही इस प्रकरण पर बड़ी ही मर्यादित किंतु अति प्रभावकारी प्रतिक्रिया दिया जो सबके लिये अनुकरणीय है ।

इस लड़की ने अपने धर्म के प्रति अपनी आस्था को जताते हुये यह स्पष्ट किया कि इस धर्म में शरीर की पवित्रता का अति महत्व है,और इसीलिये इसमें  शरीर के संबंधित विभिन्न अवयवों को अस्पृष्ट रखने का विधान है।उसने यह भी स्पष्ट किया कि उसका विश्वास मात्र शारीरिक रूपश्रृंगार के इतर अपने विचारों व कर्मों की शुभता व सुंदरता में है,जिसमें सर्वकल्याण निहित हो।

बलप्रीत कौर ने सोसलमिडिया जैसे सार्वजनिक फोरम पर अपने प्रति दिये गये नकारात्मक अथवा  इसकी प्रतिकृयास्वरूप मिली किसी सकारात्मक व सहानुभूतिपूर्ण, सभी तरह की टिप्पड़ी देने वालों के प्रति धन्यवाद जताते हुये व स्वयं के द्वारा किसी भी ऐसे कार्य या व्यवहार जिससे कोई आहत हुआ हो अथवा किसी को नागवार गुजरा हो,  हेतु क्षमा माँगते हुये,इस मुद्दे पर धार्मिक सहिष्णुता बनाये रखने का अनुरोध किया।इस लड़की के इतने शालीनतापूर्ण प्रतिक्रिया व संयमित व्यवहार का नतीजा यह रहा कि स्वयं उस व्यक्ति ने, जिसमे सोसल मीडिया पर इस लड़की की फोटो व उसपर उसपर मजाक भरे कमेंट लिखे थे,ने सार्वजनिक रूप से हार्दिक क्षमा माँगते हुये,अपने अमर्यादित व अशोभनीय आचरण पर गहरा क्षोभ व्यक्त किया।

वर्तमान परिवेश में जबकि इस तरह के मुद्दे अति संवेदनशील हो जाते हैं, व इनके कारण प्रायः सामाजिक व धार्मिक सहिष्णुता को नष्ट-भ्रष्ट करने का प्रयास किया जाता रहा है,जहाँ इस तरह की आलोचनाओं के प्रति समझदारी पूर्ण विचारदृष्टिकोण विनमय द्वारा सार्थक पक्ष रखने के विपरीत प्रायः भयंकर आरोपों-प्रत्यारोपों का विनाशकारी दुष्चक्र शुरू हो जाता है,इस तरह की सार्थक पहल व मर्यादित आचरण निश्चय ही अति अनुकरणीय व अति सार्थक विकल्प प्रतीत होता है।घृणात्मक प्रतिकृया के विपरीत,सहिष्णुतापूर्ण विचारविनमय व सही तथ्यों द्वारा सौम्यता किंतु दृढ़ता से स्पष्टीकरण ,एक नयी व सार्थक समझ का जन्म व सद्व्यवहार में एक नयी शुरुआत  देता है।इसके परिणामस्वरूप हार अथवा जीत का खट्ठा-मीठा अनुभव रखने के विपरीत एक सर्वविजयीभाव व बेहतर सौहार्द व पारस्परिक विश्वास उत्पन्न होता है।  

इसमें कोई दो राय नहीं कि शालीनता व संयमपूर्ण व्यवहार का हमारे ऊपर सदैव शुभ-प्रभाव होता है।इसके अनगिनत उदाहरण हैं,चाहे हमारा किसी से कितना ही बड़ा मतभेद व विचारसंघर्ष हो, किंतु इतना निश्चय है कि यदि हम अपने प्रतिरोध अथवा प्रतिक्रिया में शालीनता पूर्ण आचरण का पालन करते हैं,व संयमपूर्ण व्यवहार रखते हैं,तो किसी अनर्थकारी परिस्थिति से अवश्य बचा जा सकता है।

किसी भी अन्याय के विरुद्ध शालीनतापूर्ण प्रतिरोध व संघर्ष के द्वारा विरोधी पर प्रभावी विजय प्राप्त करने का उदाहरण महात्मा गाँधी से बेहतर भला क्या हो सकता है।गाँधी जी द्वारा किये गये बड़े से बड़े संघर्ष व आंदोलनों में नियम,संयम व सदाचार , विशेषकर अहिंसा, का प्रधान महत्व होता था।इन सदाचारों के मूल्य पर प्राप्त हुई किसी भी प्रकार की जीत उन्हें अस्वीकार्य थी। देश के स्वतंत्रता आंदोलन जैसे महत्वपूर्ण अभियान में भी , जबकि कोई आंदोलन सफलता की पराकाष्ठा पर होता था अथवा विजयश्री हाथ में दिखती  थी, किंतु जब उन्हें ऐसा अनुभव होता कि आंदोलन में आंदोलनकारियों द्वारा निर्धारित नियमों का उल्लंघन व  शालीनता व सदाचरण का हनन हो रहा है, अथवा आंदोलनकारियों का व्यवहार हिंसक हो रहा है, वे तुरंत उस आंदोलन को वापस लेने की घोषणा कर देते।

महात्मा गाँधी की संविधान,संविधान-तंत्रों,न्यायव्यवस्था व प्रशासनिक नियमों व विधानों में गहरी आस्था थी, व उनका विश्वास था कि संवैधानिक व न्यायिक विधानों के अंतर्गत रहते हुये व मर्यादित व अहिंसापूर्ण तरीके से भी महान से महान आंदोलन व प्रतिरोध का संचालन संभव है, व उनकी सार्थक परिणिति संभव है।इसतरह यह मात्र सैद्धांतिक विचारों में ही नहीं, अपितु उनके द्वारा इन मूल्यों का अपने आचरण व व्यवहार में सदैव प्रधानता परिलक्षित होती थी।

प्रायः शालीनता व मर्यादा का तात्पर्य कमजोरी व दब्बूपन समझ लेते हैं जो कि कतई गलत धारणा व एक भारी भूल सिद्द होती है।सच्चाई तो यह है कि शालीनता की गरिमा व सुंदरता के पीछे अति मानसिक दृढ़ता,संकल्प-शक्ति व फौलादी ताकत व हिम्मत होती है।कोई अति बहादुर योद्धा सदृश व्यक्ति ही शालीनतापूर्ण प्रतिरोध ,प्रतिकृया व संघर्ष करने की हिम्मत रखता है।

पारस्परिक घृणा के दुष्चक्र को शालीनतापूर्ण आचरण के सुलझे व्यवहार से भंग कर एक नयी व सकारात्मक शुरुआत की संभावना जागृत हो जाती है।कितने भी विषम व मतभिन्नता के कारण उत्पन्न पारस्परिक विरोध की अवस्था में भी हमें अपने प्रतिरोधी का निजी दृष्टिकोण होने व उसके द्वारा अपना विचार पक्ष रखने व इसके वैधानिक अधिकार का सदैव सम्मान करना चाहिये।हमें यह सहजता से स्वीकार करने की मर्यादा हमेशा दिखानी चाहिये कि किसी से भी गलती हो सकती है, और उसको निश्चय ही सुधारने का अवसर बिना किसी भेद-भाव के अवश्य मिलना चाहिये।

गाँधी जी को उनके 143वें जन्मदिन पर इस चिंतन व इसी के अनुरूप आचरण का संकल्प लेने से अन्यथा क्या उचित श्रद्दांजलि हो सकती है! बापू को शत-शत नमन ।

3 comments:

  1. शालीनता हम सबको अन्दर से कितना संबल देती है, अभ्यास करने वाला ही जानता है।

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  2. क्या उस लड़की ने धर्म के प्रति अपनी आस्था के कारण अपने चेहरे से बाल नहीं हटाए थे ....?
    सिख धर्म इतना भी कट्टर नहीं ....?
    आस्था की बात है ...
    जरुर इस बात पर बवाल हो सकता था लड़की की शालीनता के कारण मामला टल गया ....

    आपकी ये पोस्ट भी सार्थक रही ....

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  3. अपने -अपने विश्वास और आस्था होते हैं ये ही हमें शक्ति भी देते हैं --एक सार्थक श्रध्हांजलि है महात्मा गांधी को

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