Thursday, March 12, 2015

दूल्हा एक , सरसठ बाराती ....

चंट गुरु , प्रचंट हैं चेला
खाते गुड़ बताते ढेला ।
परदे के आगे हरिश्चंद और
पीछे जारी तिकड़म खेला ।

एक कलंदर चालीस बंदर
राजा बाँटे तिल गुड़धानी ।
हरा समुंदर गोपी चंदर ,
बोल मेरी मछली कितना पानी ?

दस बीस चालीस पचास
साठ पैंसठ सब सत्यानास ।
सरसठ हाथ चमकता धागा
चोर बन गया है राजा खास ।

राजा सिर पर मफलर बाँधे
जो मुँह खोले आती खाँसी
धाम-धूम और सजीली घोड़ी
पैदल दूल्हा घुड़चढ़े बराती ।

एडी दुड़ी तिड़ी चौवा चंपा
सेख सुतेल नापें सौ डंडा ।
तगड़ी चाँप मियाँ जी मारें
दिन भर खेलें गिल्ली-डंडा ।

ए बी सी डी इ एफ जी
उनसे निकले खंडित जी ।
खंडित जी की ढीली पैंट ,
बिना दाँव के जीतें बाजी ।

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